लेखनी कविता -बीती विभावरी जाग री -जयशंकर प्रसाद

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बीती विभावरी जाग री -जयशंकर प्रसाद बीती विभावरी जाग री!  अम्बर पनघट में डुबो रही-  तारा-घट ऊषा नागरी।  खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा,  लो यह लतिका भी ...

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